वर्ष 1910 में उद्योग विभाग का गठन हुआ था ताकि राज्य के उद्योग उत्पादों की मार्केटिंग, तकनीकि अंतर या कमियों, उद्योगों की आर्थिक सहायता एवं तकनीकि विकास और औद्योगिक शिक्षा से निपटा जा सके। इसके उपरांत वर्ष 1921 सरकार के इस्तेमाल हेतु भंडारण की खरीद की व्यवस्था के कार्य को भी इसी विभाग को सौंपा गया। यह विभाग औद्योगिक श्रम जैसे मुद्दों को भी देखता था। इस विभाग में एक अतिरिक्त विंग की स्थापना की गई जिसका कार्य औद्योगिक विवादों और श्रम सुधार व्यवस्था को दुरस्त करना था। आखिरी विश्व युद्ध के दौरान यह विंग युद्ध उत्पादन और आपूर्ति संबंधी कार्य भी देखता था। उद्योग की संख्या में प्रगतिशील बढ़ोत्तरी और श्रम समस्याओं को देखते हुए वर्ष 1945 में विभाग को दो अलग-अलग विभागों में क्रमशः उद्योग विभाग और श्रम विभाग के रूप में विभाजित कर दिया गया, पर इसके बाद भी दोनों का कार्य एक सचिव को सौंपा गया। यह पद वर्ष 1959 तक स्थायी रहा, जिसके बाद श्रम सचिव का एक अलग पद सृजित कर दिया गया। भारत सरकार द्वारा कपड़ा आयुक्त के संगठन के गठन के बाद, वर्ष 1945 में प्रदेश में एक समानांतर संगठन प्रांतीय कपड़ा नियंत्रक की भी स्थापना की गई, जिसे इसी विभाग में जोड़ दिया गया। इसी तरह चीनी आयुक्त, यूपी के संगठन की भी स्थापना की गई जिसका मुख्य कार्य राज्य में चीनी उद्योग का संचालन था और इसे वर्ष 1952 में विभाग में जोड़ दिया गया।
समय समय पर आये विभिन्न प्रकार के बदलावों के चलते, कई सारे विभाग और निगम इससे बाहर होते चले गए। वर्तमान में उद्योग विभाग के विभिन्न विंग इंफ्रास्ट्रक्चर एवं उद्योग विकास आयुक्त के अंतर्गत कार्यरत है।